
विश्व स्वास्थ्य संगठन और चीन दोनों ही जांच के चक्रव्यूह में फंस सकते हैं। कोरोना वायरस के उद्गम और प्रसार के मद्देनजर 116 देशों ने इस आशय का प्रस्ताव रखा है। जिनेवा में विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक शीर्ष बैठक में इस प्रस्ताव पर विमर्श किया गया और बुनियादी तौर पर उसे स्वीकार कर लिया गया। गौरतलब है कि सबसे पहले ऑस्टे्रलिया ने अप्रैल में यह प्रस्ताव रखा था कि कोरोना वायरस के फैलाव और उसकी जानकारियों को दबाने अथवा वुहान की ही एक भूमिगत प्रयोगशाला में वायरस को तैयार करने सरीखे गंभीर आरोपों के मद्देनजर चीन के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय जांच कराई जाए। मौजूदा प्रस्ताव में भारत की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि अब विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक निर्णायक इकाई के कार्यकारी बोर्ड का चेयरमैन भारत होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन के भीतर आगामी तीन साल तक भारत का परचम लहराएगा, लेकिन मौजू सवाल यह है कि क्या अंतरराष्ट्रीय रिस्पांस टीम उन गहराइयों तक जा सकेगी कि कोरोना वायरस का फैलाव कैसे हुआ? यह वायरस जानवरों से इंसान तक कैसे पहुंचा? क्या इस संबंध में चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को और वैश्विक संगठन ने शेष विश्व को तमाम सूचनाएं और गतिविधियां उपलब्ध कराई थीं? प्रस्ताव में चीन के साथ-साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी पक्षकार बनाया गया है। यानी उसकी पूरी भूमिका की जांच भी होगी। सवाल विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस अधानोम पर भी चस्पां किए गए हैं। इथियोपिया मूल के टेड्रोस का जब इस पद पर चयन होना था, तो आरोप हैं कि चीन ने उसमें काफी ‘मददगार’ भूमिका निभाई थी! लिहाजा चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक के आपसी समीकरण भी संदिग्ध रहे हैं। बहरहाल कोरोना वायरस के मद्देनजर जांच तो जरूर होगी। चीन के खिलाफ चश्मदीद, गवाह, सबूत सब कुछ उपलब्ध हैं, लेकिन उन्हें खंगालने की जरूरत है, क्योंकि वे कुछ बोल नहीं रहे या बोलने नहीं दिया जाता। चीन में कोरोना पर कुछ सरकार-विरोधी बोलने का मतलब जेल या हत्या है! एक विदेशी पत्रिका ने दावा किया है कि उसे जो प्रमाण हासिल हुए हैं, उनके आधार पर चीन में 6.40 लाख लोग कोरोना के घातक वायरस से संक्रमित हुए हैं, लेकिन चीन की घोषित संख्या 85,000 से भी कम बताई जा रही है। कई महत्त्वपूर्ण चेहरे चीन छोड़ कर ही कहीं और चले गए हैं। चीन में सोशल मीडिया की कई प्रमुख कंपनियों पर ही पाबंदी है। कुछ तो विरोधाभास और गड़बड़ है! बहरहाल जांच तभी किसी ठोस निष्कर्ष पर पहुंच सकती है, जब चीन की वामपंथी सरकार एक विशेषज्ञ दल को वुहान की वायरोलोजिकल लैब के भीतर तक जाने देगी और तमाम प्रयोगों की जांच भी करने देगी। हालांकि यह इतना आसान नहीं लगता। अमरीका लगातार आरोप लगाता रहा है कि चीन ने प्रयोगशाला में ही कोरोना वायरस के टेस्ट किए और वहीं से वायरस लीक हुआ। नतीजतन दुनिया भर में करीब 50 लाख लोग इसके संक्रमण से बीमार हुए हैं और तीन लाख से ज्यादा लोग मर चुके हैं। कोरोना ने दुनिया में तबाही मचा रखी है और तमाम आर्थिक उपलब्धियों को बर्बाद करने पर आमादा है। जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, स्पेन और इटली सरीखे कई देश अमरीका की थ्योरी का समर्थन करते रहे हैं। वे इतना चीन-विरोधी हो गए हैं कि जर्मनी की जूते बनाने वाली वैश्विक कंपनी ने चीन से अपना बोरिया-बिस्तर बांध लिया है और भारत में आगरा की एक बड़ी कंपनी से समझौता-पत्र पर हस्ताक्षर भी कर दिए हैं। यह तो शुरुआत ही है। यदि जांच के दौरान कुछ प्रामाणिक सबूत सामने आते हैं और कोरोना को लेकर चीन की भूमिका, साजिश बेनकाब हो जाती है, तो विश्व के तमाम समीकरण बदलने तय हैं। जापान ने भी चीन से अपनी कई कंपनियों को बाहर आने का आग्रह किया है। यूरोप में चीन के आम नागरिक के प्रति सामाजिक व्यवहार भी कठोर होने लगा है। वहां चीनियों को मारने-पीटने भी लगे हैं, लिहाजा कोरोना वायरस के मद्देनजर चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन की जांच बेहद महत्त्वपूर्ण है। इससे संयुक्त राष्ट्र संघ का वैश्विक दर्जा भी निश्चित होगा, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन भी यूएनओ से मान्यता प्राप्त संगठन है। बहरहाल यह भी लंबी लड़ाई साबित होने वाली है, लेकिन जांच व्यावहारिक तौर पर शुरू जरूर होनी चाहिए।